– चौसठ योगिनी मंदिर के डिजाइन अनुरूप बना है पुराना संसद भवन
– मुरैना में आज भी मौजूद हैं 8वीं सदी के प्रमाण
– विलुप्तप्राय: घडिय़ालों का अस्तित्व बचाए हुए हैं चंबल नदी
मध्यप्रदेश का प्रमुख जिला मुरैना ऐतिहासिक धरोहरों का गढ़ माना जाता है. मुरैना शहर में आज भी 8वीं से लेकर 14वीं सदी तक के प्रमाण के रूप में मंदिर किले सहित अनेक ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं. सबसे खास बात यह है कि मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर की डिजाइन के अनुरूप ही भारत का पुराना संसद भवन (संविधान भवन) का निर्माण गोलाकार आकार में किया गया था. मुरैना की ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए देश-प्रदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं.
मुरैना शहर सहित आसपास 8वीं सदी से लेकर 14वीं सदी के अनेक किले व मंदिर मौजूद हैं. इनमें विशेष रूप से बटेश्वर मंदिर समूह, चौसठ योगिनी मंदिर, सबलगढ़ का किला, ककनमठ मंदिर, नेशनल चंबल अभ्यारण, पहाडग़ढ़ का किला, कुंतलपुर सूर्य मंदिर, शनिचरा धाम, नूराबाद पुल और सराय, आलोपी शंकर मंदिर शामिल हैं. इसके अलावा नदियों की बात करें तो चंबल नदी, आसन नदी और कदन नदी शामिल हैं. मुरैना में मौजूद यह ऐतिहासिक धराहरें बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. यहां की चंबल नदी विलुप्त प्राय: हो चुके घडिय़ाल (मगरमच्छों) का अस्तित्व बचाए हुए हैं. इसके अलावा गंगा डाल्फिन भी यहां मौजूद हैं.
चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है संसद भवन
मुरैना शहर से करीब 25-30 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम मितावली में चौसठ योगिनी मंदिर स्थित है. इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर 10वीं-11वीं शताब्दी ईस्वी का है. इस मंदिर का निर्माण कच्छपघाट वंश के राजा देवपाल ने कराया था. इस मंदिर में 100 शिवलिंग हैं. इस मंदिर का निर्माण गोलाकार आकार में है. मंदिर में 64 कक्ष है, जिनमें सभी कक्ष में माता की प्रतिमा विराजमान है. खास बात यह है कि इस मंदिर की डिजाइन देश के पुराने संसद भवन (अब संविधान भवन) से मिलती जुलती है. कहा यही जाता है कि इस मंदिर के डिजाइन से प्रेरित होकर ही संसद भवन का निर्माण कराया गया था. मंदिर को देखने आने वाले पर्यटक पहली ही नजर में संसद भवन की डिजाइन से मिलते जुलते मंदिर की गोलाकार डिजाइन को देख अचंभित हो जाते हैं.
डाकुओं के सहयोग से मूल रूप में आया था मंदिर
मुरैना शहर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर चंबल घाटी के बीहड़ों में पड़ावली गांव के पास बटेश्वर मंदिर समूह है. बताया जाता है कि यह मंदिर 200 बलुआ विशाल पत्थरों का समूह था. इस मंदिर का निर्माण 8वीं-10वीं सदी में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के शासनकाल के दौरान हुआ था. इतिहास के अनुसार भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा और संभवत: आक्रमणों के कारण यह मंदिर खण्डह में तब्दील हो गया था. इस खंडहर में डकैत छिपा करते थे. साल 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा पूर्व डाकुओं के सहयोग से ही मंदिर के गिरे हुए पत्थरों को जोडक़र फिर से पुराने स्वरूप में ला दिया है. प्रतिदिन मंदिर को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक पहुंचते हैं व फोटोग्राफी भी करते हैं.
संघर्ष का गवाह है सबलगढ़ किला
मुरैना शहर से करीब 25-30 किलोमीटर की दूरी पर चंबल नदी के पास सबलगढ़ किला है. इस किले के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी में गुर्जर सरदार सबला द्वारा इस किले का निर्माण शुरू कराया था, हालांकि यह किला राजा गोपाल सिंह के शासन काल में पूर्ण रूप से आकार ले सका था. इस किले की मजबूत दीवारें, मजबूत रक्षा प्रणाली आज भी इसकी मजबूती का प्रत्यक्ष प्रमाण है. बताया जाता है कि यह किला मराठों (होल्कर-सिंधिया), राजपूत और जाट शासकों के बीच हुई संघर्ष का गवाह है. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं.
नेशनल चंबल अभ्यारण
चंबल नदी के किनारे ही नेशनल चंबल अभ्यारण है. यह अभ्यारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए एक विशेष केन्द्र है. इस अभ्यारण में अनेक लुप्तप्राय प्रजापति के वन्यजीव मौजूद हैं. खासकर यहां घडिय़ाल (लुप्तप्राय मगरमच्छ) प्रजाति सहित गंगा डॉल्फिन बड़ी संख्या में मौजूद हैं. इसके अलावा यहां कछुए, 300 से अधिक प्रवासी व निवासी पक्षी सहित मगरमच्छ और अन्य जलीय जीव भी पाए जाते हैं. जिन्हें देखने के लिए यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. यहां आने वाले पर्यटक नौका विहार का भी आनंद लेते हैं.
उल्कापिंड के रूप में पूजे जाते शनि महाराज
मुरैना शहर के पास ही ऐति गांव में शनिचरा धाम हैं. यह मंदिर भगवान शनिदेव को समर्पित है. यह मंदिर भारत में मौजूद शनि मंदिर में से एक प्रमुख मंदिर है. यहां शनिदेव की मूर्ति उल्कापिंड (आकाशीय पत्थर) के रूप में विराजित हैं. जिनकी श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. शनिवार के दिन यहां हजारों की तादाद में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.