– अपनी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है मुरैना
– 8वीं-10वीं शताब्दी के प्रमाण हैं मौजूद
– डाकुओं से भी पहचान जाता था मुरैना, महिला डाकू फूलन देवी पर बनी फिल्म से पूरे देश में आया था चर्चाओं में
– मुरैना के गोलाकार मंदिर की डिजाईन से बनाया गया था भारत का पुराना संसद भवन
मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित मुरैना एमपी का महत्वपूर्ण शहर है. यह शहर अपनी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है. प्राचीन मान्यता है कि मुरैना की धरती पर ही कुंती पुत्र कर्ण ने जन्म लिया था, जबकि कहा जाता है कि सूर्य के घोड़ों के निशान अब भी देखने को मिलते हैं. वहीं 8वीं से 10वीं सदी के प्रमाण आज भी मुरैना में मौजूद हैं. मुरैना की पहचान डाकुओं से भी रही. महिला डाकू फूलनदेवी पर बनी फिल्म के बाद से मुरैना को पूरे देश में मिली थी पहचान.
बता दें आज भले ही मुरैना की पहचान डाकू शब्द से जानी जाती है. एक समय था जब यहां के डाकुओं से तीन राज्य जिनमें मध्यप्रदेश, उत्तर और राजस्थान की पुलिस व लोग परेशान थे. हालांकि बाद में मध्यप्रदेश सरकार
की सक्रियता के चलते यह डाकू प्रथा मुरैना से खत्म हो गई है. अब मुरैना शहर बदलते युग में विकास की गाथा लिख रहा है. हालांकि मुरैना का इतिहास कई सदियों पुराना है. मुरैना में आज भी 8वीं-10वीं शताब्दी के अनेक प्रमाण हैं. इनमें मुख्य बटेश्वर मंदिर शामिल हैं. इतिहासकारों के अनुसार बटेश्वर मंदिर मुरैना का सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है. यह लगभग 200 बलुआ पत्थर-खण्डरों का विशाल समूह है. 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच गुर्जर-प्रतिहास राजाओं द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. इन मंदिरों में भगवान विष्णु, शिव, गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियां विराजमान है. यह मंदिर चंबल घाटी के बिहड़ों में छिपा है. हालांकि महमूद गजनवी के आक्रमण के कारण यह मंदिर खण्डहरों में तब्दील हो गया था, जिसे बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने जीर्णोद्धार कराया है.
10वीं-11वीं शताब्दी में बना चौसठ योगिनी मंदिर
मुरैना शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर मितावली गांव स्थित है. इस गांव में चौसठ योगिनी मंदिर है, जो गोलाकार आकार है. इस मंदिर में 64 कक्ष स्थित है, जिसमें माता के 64 रूप विराजित है. बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच कच्छपघाट वंश के राजा देवपाल द्वारा कराया गया था. यह मंदिर यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है. इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर की गोलाकार डिजाइन पर ही भारत का पुराना संसद भवन निर्माण कराया गया था.
कुंती पुत्र कर्ण की जन्मस्थली
मुरैना शहर में बारे में यह भी कहा जाता है कि मुरैना की धरती पर ही कुती पुत्र कर्ण का जन्म हुआ था. जन्म के बाद माता कुंती ने कर्ण को आसन नदी में प्रवाहित कर दिया था. बताया तो यह भी जाता है कि सूर्य के घोड़ों के निशान आज भी यहां देखने को मिलते हैं. दरअसल, मुरैना में कुंतलपुर (सूर्य मंदिर) है. यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है.
बगैर बाहरी सहारे खड़ा है मंदिर
मुरैना जिले के सिहोनिया गांव में कंकनमठ मंदिर (सिहोनिया) स्थित है. इस मंदिर का इतिहास है कि इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में राजा कीर्तिराज ने अपनी रानी काकनवती की मंशानुरूप बनवाया यह था. यह मंदिर अद्भुत नक्कासी के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर की एक और खास यह है कि यह बगैर किसी बाहरी सहारे के है.
हरियाली से घिरा है पहाडग़ढ़ किला
मुरैना शहर से करीब 30-35 किलोमीटर की दूरी पर पहाडग़ढ़ का किला स्थित है. यह किला चोरों ओर से हरियाली से घिरा है. बताया जाता है कि इस किलो का निर्माण 1446 ईस्वीं में राव दलकूदेवजी के पौत्र राव दानसिंह ने करवाया था. बताया जाता है कि उस दौर में यह किला कई बार दुश्मनों के हमलों का सामना करना चुका है, लेकिन अपनी मजबूती की वजह से यह मौजूद हैं. इस किले को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटन पहुंचते हैं.
डाकुओं से भी पहचाना जाता था मुरैना
एक दौर था जब मुरैना शहर की पहचान डाकुओं से हुआ करती थी. दरअसल, चंबल नदी और उसके बीहड़ की वजह से यहां डाकुओं का छिपना आसान होता था. यहां के डाकुओं की वजह से तीन प्रदेश मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की पुलिस परेशान हुआ करती थी. घने जंगलों की वजह से डाकुओं को एक राज्य से दूसरे राज्य तक भागने में आसानी होती थी. मुरैना व चंबल क्षेत्र से जो प्रसिद्ध डाकू रहे, उनमें मोहन सिंह गुर्जर, माधो सिंह, महिला डाकू फूलन देवी जो बाद में सांसद बनीं, पान सिंह तोमर और मान सिंह शामिल है.