– भारत में विलुप्त हुए चीतों को 70 साल बाद फिर से कुनो नेशनल पार्क में बसाया
– राजा-महाराजा काल की अनुभूति कराते हैं किले
– प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है श्योपुर जिला
प्राकृतिक हरिभरी वादियों से घिरे श्योपुर जिले में अनेक ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल मौजूद हैं. वर्तमान में सबसे बड़ी पहचान श्योपुर का कुनो नेशनल पार्क बन गया है, जिसमें भारत से विलुप्त हुए चीतों को 70 साल बाद फिर से बसाया गया है. इसके अलावा श्योपुर जिले में मौजूद किले राजा-महाराजा काल की अनुभूति कराते हैं. चंबल घडिय़ाल सेंचुरी भी देश भर के पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है.
श्योपुर जिले में पर्यटन के रूप में कूनो राष्ट्रीय उद्यान, त्रिवेणी संगम, डोब कुण्ड, मानपुरा का किला, बड़ोदा किला, सहरिया संग्रहालय, चंबल घडिय़ाल सेंचुरी, धनायचा सहित श्योपुर फोर्ट शामिल हैं. 11वीं से 15वीं शताब्दी के यह ऐतिहासिक प्रमाण आज भी मौजूद हैं, जिन्हें देखने के लिए देश भर से पर्यटक श्योपुर पहुंचते हैं, जबकि कूनो नेशनल पार्क में चीतों को बसाने के बाद से पर्यटकों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक गाइडों की मदद से पुरा संपदा की जानकारी अर्जित करते हैं तो फोटोग्राफी का भी आनंद लेते हैं. यह ऐतिहासिक धरोहरें श्योपुर जिले को पूरे देश में पहचान दिला रही है.
कूनो नेशनल पार्क ने देश भर में दिलाई पहचान
वर्तमान में कूनो जिले की सबसे बड़ी पहचान कूनो नेशनल पार्क हो गया है. दरअसल, कूनो नेशनल पार्क में साल 1952 से विुलप्त हुए चीतों को फिर से बसाया गया है. साल 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर 17 सितंबर को नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को यहां स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रिलीज किया गया है. इन चीतों में 5 मादा और तीन नर चीते शामिल हैं. भारत में यह पहली बार हुआ जब चीतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप स्थानांतरित किया गया. इसके बाद फरवरी 2023 में अफ्रीका से 12 चीते लगाए गए. इस तरह कूनो नेशनल पार्क में चीतों की संख्या में 20 हो गई थी, लेकिन उतार-चढ़ाव के चीते एवं माहौल में ढल नहीं पाने की वजह से चीतों की मौत भी हुई. हालांकि अब धीरे-धीरे चीतों के कुनबे में इजाफा होने लगा है, अब चीतों की संख्या 29 हो गई है. इन चीतों को देखने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं. कूनो नेशनल पार्क की वजह से श्योपुर के व्यापार में भी तेजी से वृद्धि हुई है.
सीप-कलवाल के संगम पर स्थित है किला
सीप व कलवाल नदी के संगम पर श्योपुर किला स्थित है. यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक है, जो 15वीं सदी के राजा महाराजाओं के शासनकाल की यादों को ताजा करता है. मान्यताएं हैं कि इस किले का निर्माण 1537 ईस्वी में हुआ था, जबकि कुछ अन्य तत्यों में यह 11वीं शताब्दी का भी बताया जाता है. बहरहाल इस किले पर अकबर से लेकर सिंघिया शासकों का आधिपत्य रहा है. किले में शीश महल, हवा महल, शंकर महल सहित अनेक दार्शनिक स्थल है.
बड़ौदा व मानपुरा किला
श्यामपुर में दो ओर अन्य किले हैं, जिनमें बड़ौदा किला और मानपुरा किला हैं. इतिहासकारों के अनुसार बड़ौदा किले का निर्माण खींची राजाओं द्वारा कराया गया था हालांकि बाद में राजा इंद्रा सिंह गौड़ ने इसे जीतकर श्योपुर रियासत में शामिल कर लिया था. यह किला भी श्योपुर में ऐतिहासिक धरोहर है. इधर मानपुरा किले की बात करें तो यह श्योपुर से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसमें राजा मानसिंह द्वारा बनवाया गया था, जो बाद में श्योपुर के गौड़ राजाओं के अधीन आ गया था.
यहां होता तीन नदियों का मिलन
श्योपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूरी पर रामेश्वर त्रिवेणी संगम स्थल हैं. यहां तीन नदियों का संगम होता है, जिनमें चंबल, सीप और बनास नदिया हैं, जिनका यहां मिलन होता है, इसलिए इसे रामेश्वर त्रिवेणी संगम कहा जाता है. इस स्थल को मीणा जनजाति का प्रयागराज भी कहा जाता है. यहां प्राचीन शिवलिंग स्थापित हैं. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें मध्यप्रदेश सहित राजस्थान से भी बड़ी संख्या में आते हैं.