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Mohar Singh dacoit story: आख़िर मोहर सिंह कैसे बना डाकू? जानिए पूरी कहानी?

Mohar Singh dacoit story

Mohar Singh dacoit story: 1960 के दशक का एक ऐसा दौर जब चंबल की घाटियों में एक नाम हर किसी की जुबान पर था…पान सिंह तोमर। वह एक डाकू था साथ ही बागी, एक जेंटलमैन डाकू, जिसे कभी दद्दा तो कभी रॉबिन हुड कहा गया। उसका आतंक इतना गहरा था कि उसके सिर पर 3 लाख का इनाम था, लेकिन असली दहशत उस वक्त फैली जब उसने एक ही किडनैपिंग से 26 लाख की भारी फिरौती हासिल की। ऐसी छवि जिसने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया था। जब 1972 में JP ने चंबल के डाकुओं के सरेंडर की योजना बनाई, तब तक इंदिरा गांधी ने इसे रोकने की पूरी कोशिश की। ये कहानी है उस आदमी की, जिसने बदले की आग में एक युग का स्वरूप बदल डाला। चंबल का सबसे खतरनाक डाकू? बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में” ….यह डायलॉग आज ‘पान सिंह तोमर’ फिल्म की याद दिलाता है, जिसमें इरफान खान ने इसे अमर कर दिया। बता दें इससे भी पहले मई 1960 में चंबल के बीहड़ किनारे विनोबा भावे ने इसी सच्चाई पर जोर देते हुए भाषण दिया था? यह डायलॉग उस समय की सच्चाई थी। यह ऐसा समय था जब कानून तोड़ने वाले बीहड़ में छिपे थे। वहीं राजनीती में डकैतों ने कब्ज़ा किया था । बता दे उस समय विनोबा डाकू तहसीलदार सिंह की पहल पर डाकुओं के सरेंडर का प्रयास कर रहे थे। तहसीलदार सिंह, मान सिंह का बेटा था। यह वही है जो 1950 के दशक में चंबल के सबसे बड़े डाकू के नाम से जाना जाता था। इसने 180 से अधिक लोगो को मौत के घाट उतारा था , जिनमे 32 पुलिस अफसर थे। 1955 में मान सिंह एक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। उसके मारे जाने के बाद डाकुओं के अलग-अलग गैंग्स में सबसे बड़ा बनने के लिए होड़ सी लगने लगी । 1958 में एक और नाम इस लड़ाई में शामिल हुआ। वह नाम था मोहर सिंह गुर्जर। मोहन सिंह की कहानी भी दूसरे चंबल डाकुओं जैसी ही थी। उनके एक रिश्तेदार ने चीन से ज़मीन हड़प ली थी। मामला पुलिस के पास गया फिर उन्होंने अदालतों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। एक आम नागरिक की तरह मोहर सिंह भी दर-दर भटकते रहे, लेकिन उन्हें कभी न्याय नहीं मिला। एक समय ऐसा आया जब थक-हारकर उसने हथियार उठा लिए और बीहड़ों की ओर चल पड़ा। उस समय चंबल में फिरंगी सिंह, देवीलाल, छक्की मिर्धा, शिव सिंह और रामकल्ला जैसे डाकूओं का बोलबाला था। मोहर ने उनसे अपने गिरोह में शामिल होने की अपील की, लेकिन सभी ने उसे ठुकरा दिया। अंततः यह तय हुआ कि मोहर सिंह अपना गिरोह बनाएगा। डकैती की दुनिया का ‘दद्दा’ 1960 में दर्ज हुआ पहला केस सिर्फ एक शुरुआत थी। धीरे-धीरे मोहर सिंह का नाम अपराध की दुनिया में तेजी से फैलने लगा। उसका गैंग का नेटवर्क भी यूपी, मध्यप्रदेश और राजस्थान तक फैल गया। चंबल के बीहड़ों में उसका खौफ इस कदर था कि गांव वाले उसका नाम सुनते ही सहम जाते थे। गैंग के 150 से भी ज्यादा सदस्यों के लिए वो ‘दद्दा’ था…एक नेता, एक रणनीतिकार, और एक कड़क अनुशासन वाला सरगना…लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में वो ‘E-1’ यानी ‘एनेमी नंबर 1’ बन चुका था । पुलिस उसकी खोज़ में लगी थी। मोहर सिंह ने बचने का एक अचूक तरीक़ा ईजाद कर लिया था। डाकुओं को पकड़ने के लिए पुलिस मुखबिरों की मदद लेती थी। मोहर सिंह ने पूरे इलाक़े में ऐलान कर दिया कि अगर किसी ने मुखबिरी की, तो वो उसके पूरे परिवार को मार डालेगा। जैसा उसने कहा, वैसा किया भी। मुखबिरों की हत्याओं के ऐसे कई केस उसके और उसके गैंग के नाम से दर्ज़ हुए और पूरे इलाक़े में उसका ख़ौफ़ बन गया। जहां दूसरे गिरोह मुखबिरी के डर से किसी भी गांव में रुकने से डरते थे, वहीं मोहर सिंह बेख़ौफ़ और बेरोकटोक गांवों में आता-जाता था। आत्मसमर्पण का दिन अप्रैल 1960 के पहले हफ़्ते में मध्य प्रदेश के मोरोना से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित धोरेरा गांव अचानक इतिहास का गवाह बन गया। प्रशासन ने गांव को खाली करवाया। जल्द ही चंबल के करीब 200 डाकू वहां इकट्ठा हुए। 14 अप्रैल को समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण के सामने मोहर सिंह, उसका पूरा गैंग और अन्य छोटे गिरोहों ने आत्मसमर्पण कर दिया। डकैतों के हाथों में बंदूकें नहीं थीं। उनके मुंह से ‘गांधी की जय’, ‘जेपी की जय’ के नारे निकल रहे थे । एक ऐसी तस्वीर जिसे देश ने पहले कभी नहीं देखा था। सरेंडर के बाद सभी डकैतों को ग्वालियर जेल लाया गया। मुकदमा चला और मोहर सिंह को फांसी की सज़ा के साथ ₹10,000 का जुर्माना सुनाया गया। मोहर सिंह की फितरत ने कोर्ट में भी उसका साथ नहीं छोड़ा। सज़ा सुनते ही वो मुस्कराया और बोला: “जज साहब, अगर मैं फांसी चढ़ गया… तो जुर्माना कौन भरेगा?” कोर्ट रूम में ठहाका गूंज गया। अंततः, अदालत ने मोहर सिंह को 20 साल की जेल की सज़ा सुनाई। हालाँकि, जेल में उनके अच्छे व्यवहार के कारण उन्हें 1980 में रिहा कर दिया गया। रिहा होने पर उन्हें एक नया उपनाम मिला: “जेंटलमैन डकैत”। उन्होंने आत्मसमर्पण के बदले सरकार से मिली 35 एकड़ ज़मीन पर खेती शुरू कर दी और अपराध की दुनिया से नाता तोड़ लिया। 1982 की फ़िल्म “चंबल के डाकू” में, मोहर सिंह ने खुद एक डाकू की भूमिका निभाई थी। इस तरह उन्होंने अपने जीवन की सच्ची कहानी को फ़िल्म में जीवंत कर दिया। ये भी पढ़ें : महाकाल की नगरी उज्जैन पहुँचे अभिनेता संजय दत्त, भस्म आरती में हुए सम्मिलित

Sanjay Dutt Mahakal visit: महाकाल की नगरी उज्जैन पहुँचे अभिनेता संजय दत्त, भस्म आरती में हुए सम्मिलित

Sanjay Dutt Mahakal visit

Sanjay Dutt Mahakal visit: उज्जैन। बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता संजय दत्त आध्यात्मिक यात्रा पर मध्यप्रदेश के पवित्र शहर उज्जैन पहुंचे। वहां उन्होंने बाबा महाकालेश्वर के मंदिर में दर्शन किए। गुरुवार सुबह वे भस्म आरती में शामिल हुए और नंदी हॉल में बैठकर ध्यान लगाया। इस दौरान उन्होंने भगवान महाकाल की पूजा की। संजय दत्त के मंदिर पहुंचने की खबर जैसे ही फैली, श्रद्धालुओं का तांता लग गया। लोग उन्हें देखने और उनकी भक्ति का हिस्सा बनने के लिए मंदिर में जुट गए। पूरे परिसर में भक्तिमय माहौल बन गया। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि संजय दत्त ने पूजा पूरी श्रद्धा और नियम के साथ की । यह पहली बार नहीं है जब संजय दत्त बाबा महाकाल के दरबार में आए हैं। वे कई बार उज्जैन पहुंच चुके हैं। उनकी आस्था बाबा महाकाल के प्रति हमेशा रही है। दर्शन के बाद संजय दत्त ने कहा…. “मुझे बहुत सौभाग्य मिला कि बाबा महाकाल ने मुझे यहां बुलाया। मेरे पास अपने अनुभव बताने के लिए शब्द नहीं हैं। आज मैंने प्रत्यक्ष रूप से उनकी शक्ति का अनुभव किया है। बाबा महाकाल का आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ बना रहे।” ये भी पढ़ें : समय श्रीवास्तव बने भारत के खिलाफ खेलने वाले भोपाल के पहले क्रिकेटर

Guna News: अंडर-17 बास्केटबॉल में गुना बना क्लस्टर चैंपियन,12वीं चैंपियनशिप का शानदार समापन…

Guna news

Guna Became The Cluster Champion In Under 17: गुना। नील वर्ल्ड स्कूल में आयोजित पाँच दिवसीय सीबीएसई क्लस्टर 12वीं बास्केटबॉल चैंपियनशिप 2025-26 का भव्य समापन हुआ। इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में अंडर-14, अंडर-17 और अंडर-19 बालक वर्ग के मुकाबले खेले गए, जिसमें मध्यप्रदेश के 43 सीबीएसई स्कूलों से आए 450 से अधिक खिलाड़ियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। बता दें समारोह के मुख्य अतिथि कलेक्टर किशोर कुमार कान्याल और विशेष अतिथि नील वर्ल्ड स्कूल के सीईओ वीरेंद्र भदौरिया रहे। समारोह में सीबीएसई तथा मध्यप्रदेश बास्केटबॉल एसोसिएशन के अधिकारी उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि का स्वागत पौधा और स्मृति चिन्ह देकर किया गया। बेस्ट खिलाड़ी का हुआ सम्मान बेस्ट खिलाड़ी सम्मान के अंतर्गत चैंपियनशिप में प्रत्येक आयु वर्ग की टीमों से एक-एक उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी को चयनित किया गया। अंडर-14 वर्ग में डीपीएस इंदौर के अतिकेश बिष्ट, अंडर-17 में क्राइस्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल गुना के गौरांश सक्सेना तथा अंडर-19 वर्ग में माउंट इंडेक्स इंटरनेशनल स्कूल इंदौर के प्रशांत सिंह को “बेस्ट प्लेयर” के खिताब से नवाजा गया। टीमों को मिला ट्रॉफी और पदक समापन समारोह के दौरान विजेता और उपविजेता टीमों को ट्रॉफी के साथ-साथ स्वर्ण, रजत और कांस्य पदकों से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने खिलाड़ियों की खेल भावना और मेहनत की सराहना करते हुए उन्हें आगे भी निरंतर प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने नील वर्ल्ड स्कूल द्वारा की गई उत्कृष्ट आयोजन व्यवस्था की भी प्रशंसा की। वहीं, स्कूल के सीईओ और प्राचार्या ने सभी प्रतिभागी टीमों को बधाई दी। ये भी पढ़ें : ड्रग्स माफिया के नेटवर्क पर एक और बड़ी कार्रवाई, यासीन का करीबी फैजान गिरफ्तार…