Chambal River : भारत की प्राचीन नदियों में से एक चंबल नदी, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर बहती हुई प्राकृतिक, सांस्कृतिक और पौराणिक गौरव की प्रतीक है। ऐतिहासिक ग्रंथों में इस नदी का उल्लेख ‘चर्मण्वती’ नाम से मिलता है। माना जाता है कि प्राचीन काल में राजा रंतिदेव ने इसी नदी के किनारे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। आइए, इस लेख में आगे बढ़ते हुए चंबल नदी से जुड़ी रहस्यमयी कथाओं को जानते हैं…
जानिए इसकी रहस्यमयी कहानी
चंबल नदी से जुड़ी एक प्राचीन कथा इसे अन्य भारतीय नदियों से अलग बनाती है। मान्यता है कि राजा रंतिदेव द्वारा आयोजित एक महायज्ञ के दौरान ऋषि-मुनियों के आदेश पर हजारों जानवरों की बलि दी गई थी। बलि के बाद बहाए गए रक्त से इस स्थल पर एक धारा बनी, जो आगे चलकर चंबल नदी का रूप ले बैठी। इसी रक्तप्रवाह के कारण इस नदी को अपवित्र माना जाने लगा।
बता दें गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियों को हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है। वहीं चंबल एक मात्र प्रमुख नदी है जिसकी पूजा नहीं की जाती।
चंबल नदी की श्रापित मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंबल नदी जिसे प्राचीनकाल में ‘चर्मवती’ कहा जाता था, महाभारत की एक अत्यंत दुखद और अपमानजनक घटना का साक्षी रही है। कहा जाता है कि यही वह स्थान था जहाँ कौरवों और पांडवों के बीच चौसर का खेल हुआ था, जिसमें पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी तक को हार दिया। इसके बाद कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का अपमान किया। इस अत्याचार और अपमान से आहत होकर द्रौपदी ने चर्मवती नदी को श्राप दे दिया कि इसकी पूजा कभी नहीं होगी।
श्रवण कुमार
एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार, चंबल नदी श्रवण कुमार की कथा से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को तीर्थयात्रा पर ले जा रहे थे, तो रास्ते में चंबल नदी पार करते समय उन्होंने नदी का पानी पिया। पानी पीने के बाद अचानक उन्हें क्रोध आ गया। वे अपने माता-पिता को वहीँ छोड़कर आगे निकल गए।
हालांकि, कुछ दूर जाकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। वे वापस लौटे, माता-पिता से क्षमा मांगी और फिर एक बार फिर उन्हें साथ लेकर तीर्थयात्रा की ओर रवाना हुए।
विकास में चंबल का योगदान
मानसून के समय चंबल नदी ने अत्यधिक जल प्रवाह होता है जबकि गर्मियों में जल स्तर काफी गिर जाता है। इसी जल का उपयोग कर केंद्र सरकार ने 1954 में ‘चंबल घाटी परियोजना’ की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य नदी के जल का अधिकतम उपयोग करना और बाढ़ नियंत्रण करना था।
इस परियोजना के तहत तीन प्रमुख बांधों का निर्माण किया गया। गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध (चित्तौड़गढ़), और जवाहर सागर बांध (कोटा)। ये तीनों बांध राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित हैं। इनके माध्यम से हाइड्रो पावर उत्पादन किया जाता है, जबकि कोटा बैराज के ज़रिए चंबल के जल का वितरण दोनों राज्यों के किसानों के बीच बराबरी से किया जाता है।
डकैतों की धरती
चंबल नदी जितनी प्रसिद्ध अपने धार्मिक और विकासात्मक पहलुओं के लिए है, उतनी ही कुख्यात इसके बीहड़ों के कारण भी रही है। लगभग 16 किलोमीटर के चौड़े क्षेत्र में फैले चंबल के बीहड़ों ने लंबे समय तक भारत के सबसे खतरनाक डकैतों को शरण दी। मोहर सिंह, मलखान सिंह, पान सिंह तोमर, फूलन देवी, मुस्तकीम, निर्भय गुर्जर और सलीम गुर्जर जैसे कुख्यात नामों ने यहीं से अपनी गैंगवार और लूटपाट की कहानियाँ रचीं।
इन बीहड़ों की भौगोलिक बनावट ने इन्हें पुलिस और सुरक्षा बलों की पकड़ से दूर बनाए रखा। यही कारण है कि आज भी चंबल का नाम सुनते ही लोगों के ज़ेहन में नदी से ज़्यादा डकैतों की छवि उभरती है।
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