Dussehra 2025: ओंकारेश्वर (मप्र)। देशभर में विजयादशमी यानी दशहरा का पर्व रावण दहन के साथ मनाया जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश के धार्मिक नगर ओंकारेश्वर में दशहरे की परंपरा कुछ अलग ही है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक इस नगर में कभी रावण दहन नहीं किया जाता। आखिर क्या है वजह चलिए जानते हैं….
स्थानीय मान्यता के अनुसार, ओंकारेश्वर और इसके 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित किसी भी गांव में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। लोगों का मानना है कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने अपनी तपस्या के दौरान अपने सिर भगवान शिव को अर्पित किए थे।
2013 की घटना ने दी चेतावनी
वर्ष 2013 में शिवकोठी गांव के कुछ युवाओं ने परंपरा को तोड़ते हुए रावण दहन किया था। इसके बाद गांव में भारी विवाद खड़ा हो गया। गांव दो गुटों में बंट गया, महिलाएं आपस में बोलना बंद कर बैठीं, धार्मिक आयोजन ठप हो गए और सामाजिक संबंधों में दरार आ गई। अंततः गांव के बुजुर्गों ने हस्तक्षेप कर मामला सुलझाया गया । इसके बाद संकल्प लिया गया कि भविष्य में रावण दहन नहीं होगा। ओंकारेश्वर के पंडा संघ के अध्यक्ष पं. निलेश पुरोहित का कहना है कि रावण दहन में बहुत अधिक खर्च होता है, इसलिए भी इसे यहां नहीं किया जाता।
ऐसे मनाया जाता है दशहरा
रावण दहन न होने के बावजूद ओंकारेश्वर में दशहरा पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भगवान ओंकारेश्वर की भव्य सवारी शाम 7 बजे मंदिर परिसर से निकलती है। नगर भ्रमण के बाद खेड़ापति हनुमान मंदिर पहुंचती है, जहां शमी वृक्ष की पूजा होती है। इसके बाद सवारी मंदिर लौटती है और राजमहल में राजा राव पुष्पेंद्रसिंह गद्दी पर विराजमान होते हैं। जनता उन्हें विजयादशमी की शुभकामनाएं देती है ।
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